Sunday, November 28, 2010

कल रात कोई चुपके से मेरे ख्वाब चुरा गया...

कल रात कोई चुपके से मेरे ख्वाब चुरा गया,
नींद थी गहरी मेरी,
कोई आ के जगा गया,

सोचा था सहला जाएगा वो,
अपने नर्म हाथों से,
पता नहीं था यूँ धोका दे जाएगा,
अपनी प्यारी बातों से,

सहमा सहमा, कुछ घबराया सा,
जाग रहा हूँ अकेला अब मैं,
आँखों को मसलता, ढूँढता एक साया सा,
भटक रहा हूँ अब मैं,

मैं जिस रहा पे चलना भूल गया था,
उस राह पे कोई ले आया मुझे,
जब चलना फिर से सीख रहा था,
कोई तन्हा छोड़ गया मुझे,

सवालों से घिरा,
सवाल हर पल खुद से करता हूँ मैं,
छुपाये अपना चेहरा,
आईनों से बचता हूँ मैं,

के दिल तो टुटा ही हुआ था मेरा,
उसे चकना चूर करने की ज़हमत क्यों की,
क्या जुर्म था वो मेरा,
जिसे बताने की भी ज़रूरत न समझी,

क्यों ख्वाब मेरे हमेशा अधूरे रह जाते है,
क्यों प्यार के मंज़र बस मंज़र बन के रह जाते है,
क्यों हकीकत से हम अनजान रह जाते है,
क्यों उम्मीद के सहारे भवंदर में फस जाते है,

नकार तो सकता हूँ मैं इस दर्द को,
कोई और राह भी तो नहीं है,
बस पूछता हूँ ये खुद को,
के ज़िन्दगी अब भी इम्तेहान ही क्यों ले रही है...


Love One Love All
Mohit Chopra
28th Nov 2010
9:45 to 10 pm

4 comments:

Anonymous said...

again very good poem but plzz also write happy ending poem:)

Anonymous said...

kya ho gaya hai Moi...ur such compositions disturb me..n make me so concerned abt u..:(

Anonymous said...

Wts wrong.........!!!!

Anonymous said...

ekdum se kya huya? u had started writing happy poems in between...
take care